सरस्वती संघ, पटना के पावन संदेश
आध्यात्मिक चेतना के
कारण भारत का अतीत सदा से गौरवमय रहा है । विदेशी आक्रमण के कारण हमारा सांस्कृतिक
पक्ष कुछ अस्त व्यस्त जरूर हुआ परन्तु हमारी लेखनी आदर्श और कर्तव्य-बोध कराने में
कभी पीछे नहीं रही । तभी तो कहा जाता है-
“।। दुर्लभ
भारतं देशे जन्म: ।।”
प्रारम्भ से ही किसी
भी राष्ट्र के आधार स्तम्भ और कर्णधार के रूप में छात्रों को जाना जाता रहा है ।
गुरूकुल में अपनी त्यागशीलता, सेवा और समर्पण का पाठ पढ़कर गुरू से आशीर्वाद
प्राप्त कर छात्र कर्म-पथ निकलते थे और सम्पूर्ण राष्ट्र के गौरव को उज्जवल से
उज्जवलतम रूप प्रदान करने में सफल होते थे । आज भी राष्ट्र का विकास, आध्यात्मिक
चेतना की जागृति एवं नये कल का निर्माण के लिए उन्हीं की ओर हमारी दृष्टि जाती है
। इतिहास साक्षी है कि जब भी राष्ट्र में कोई बड़ा परिवर्तन हुआ है तो छात्रों के
सहयोग से ही संभव हो सका है ।
युग और परिस्थिति के कारण अथवा नैतिक
पक्षों पर ध्यान नहीं देने के कारण आज के प्रायः छात्र अपने कर्तव्य को भूलते जा
रहे हैं । शिक्षा के स्तर में आई गिरावट के कारण छात्र जाति-पाति, राजनितिक
दलबन्दी आदि के शिकार हो गये हैं । चुनाव से लेकर दैनिक जीवन में भी इनका जमकर
दुरुपयोग होता है । आज के छात्र आध्यात्मिकता से पृथक अपने चेहरे पर चरित्रहीनता,
जातिवाद, संक्रीर्ण मानसिकता आदि के कलंक निरन्तर लगाते जा रहे हैं । छात्रों से
लोगों की आस्था अब इस तरह उठ चुकी है कि इनसे सृजनात्मक कार्यों की अपेक्षा
बिल्कुल नहीं की जा सकती है । आधुनिक छात्रों ने पशुवत प्रवृति को लेकर स्वार्थ
में जीना सिख लिया है । शिक्षकों और माता-पिता के प्रति सेवा और समर्पण की भावना
मिट चुकी है ।
ऐसी बात नहीं कि हमारे राष्ट्र के सभी
छात्रों की स्थिति यही है । अभी भी सीमित संख्या में ही सही एक से एक प्रतिभावान
लाल गुदड़ी में छिपे है । क्या हमारा यह
दायित्व नहीं बनता है कि हम सभी मिलकर अपने खोते जा रहे गौरव को लौटायें ? क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि हम मानवता की पूजा करें ? क्या अपने गुरुजनों एवं माता-पिता का आशीर्वाद हमें फिर से नहीं मिल सकता
? क्या विनाश और ध्वंसात्मक कृत्यों की ओर कदम बढ़ाने वाले
भाईयों को हम लौटा नहीं सकते ?
इन्हीं लक्ष्यों की पुर्ति हेतु सन्
1964 ई. के श्रावण मास में सरस्वती संघ की स्थापना की गई । आज इस संघ की विभिन्न
शाखायें अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न दिशाओं में कार्यरत है, ‘अर्चना’ प्रार्थनाओं के आधार पर ही हम अपना
कार्यक्रम प्रत्येक रविवार को माँ सरस्वती के समक्ष पूर्ण समर्पित भाव से प्रस्तुत
करते हैं । आज हजारों की संख्या में भटकती हुई युवा मानसिकता अध्ययन के साथ-साथ
अध्यात्म की महता को व्यवहारिक रूप में समझ रही है । संघ के सदस्य संस्था के
उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कदम से कदम मिलाकर चलने में गौरव का अनुभव कर रहे हैं ।
गुलाब
जी की शब्दावली में-
“विषमती, फूट,
मिथ्याचार भागे ।
सभी को उदय, नव ज्योति जागे ।।
विजित को प्यार से तक्षक विषैले ।
दयामय !
विश्व में सद्भाव फैले” ।।
Leave a Comment